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इस्लामी तर्बियत नाफरमान औलाद मां बाप जिम्मेदारी खानदान मुल्क दीन का नुक्सान

अक्सर माँ-बाप कहते है हमारी औलाद नाफरमान है,

 हमारा ख्याल नहीं करती, हमारा अदब नहीं करती, हमारा हक नहीं देती, हमारे मुकाबले में बीवी की बात सुनती, हम को डराती-धमकाती और हमारे साथ बेइज्जती का सुलूक करती है वगैरह।

 हालांकि उनकी औलाद में यह तमाम नाफरमानियां खुद उन ही की हक तलफी का नतीजा है। 

अगर उन्होंने अपना हक अदा किया होता, बचपन से ही अपनी औलाद की तर्बियत इस्लामी अंदाज पर की होती तो आज उनकी औलाद उनका मकाम पहचानती, उनका अदब व एहतराम करती और उनका हक अदा करती और उनकी खिदमत करने को इबादत समझती। अक्सर मां-बाप को सिर्फ औलाद से हुकूक लेने की ही बड़ी फिक्र रहती है मगर वह औलाद के हुकूक अदा करने की बिल्कुल फिक्र ही नहीं करते और न उनको इस बात का एहसास ही होता है कि उन्होंने अपनी औलाद के हुकूक को अदा न करके औलाद का, खानदान का, माहौल और समाज का, मुल्क का और दीन का कितना बड़ा नुक्सान किया है।

बच्चों की तालीम व तर्बियत मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी है
। तर्बियत का तमामतर बोझ मां पर डाल देना एक नामुनासिब और गैरमाकूल तरीका है।


 बच्चों के दोस्तों पर गहरी नजर रखना वाल्दैन की लाजिमी जिम्मेदारी है। वाल्दैन बच्चों के साथ रोजाना कुछ न कुछ वक्त गुजारें।

 बच्चों को इब्तिदाई उम्र से ही सच्चाई, अमानतदारी, बुजुर्गों की इज्जत, पड़ोसियों से बेहतर सुलूक सिखाया जाए। फिर उन्हें बुरे अखलाक मसलन झूट, चोरी, गाली गलौच से सख्ती के साथ बचाया जाए।