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मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम :जन्म और पालन-पोषण mohammed

हज़रत पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम का जन्म ५७१ ई॰ में क़ुरैशश (जिसकी अरब के लोगताज़ीम और आदर व सम्मान करते थे) के क़बीला में मक्का के अंदर हुआ, जो अरब ‌‍‍द्वीप  समूह काधार्मिक केन्द्र समझा जाता है, जहाँ काबा मुशर्रफा है जिसे अबुल-अम्बिया इब्राहीमऔर उनके सुपुत्र इस`माईल अलैहिमस्सलाम ने बनाया था, जिसका अरब के लोग हज्ज करते औरउसका तवाफ करते थे। अभी आप अपनी माँ के पेट ही में थे कि आपके पिता का निधन हो गया।और आप के जन्म के पश्चात ही आपकी माँ भी चल बसीं। चुनाँचे आपको यतीमी की जि़ंदगी बितानी पड़ी, आप के दादा अब्दुल-मुत्तलिब ने आपकी किफालत की। जब आपके दादा की भीमृत्यु हो गई तो आपके चचा अबु-तालिब ने आपकी किफालत संभाली।
आपका क़बीला और उसके आसपास के अन्य क़बाईल बुतों की पूजा करते थे जिन्हें उन्हों ने पेड़, और कुछ को पत्थरऔर कुछ को सोने से बना रखा था और वह काबा के चारों ओर रख दिए गए थे। और लोग उनकेबारे में लाभ और हानि का आस्था रखते थे।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पूरीजि़ंदगी सच्चाई और अमानत दारी का पैकर थी, आप  के बारे में बेवफाई, झूठ, खियानत, धोखा और फरेब का कोई उल्लेख नहीं है। आप अपनी क़ौम के बीच 'अमीन' (अमानत दार,विश्वस्त) के लक़ब से प्रसिद्ध थे। लोग आप के पास अपनी अमानतें रखते थे और जब सफरका इरादा करते तो अपनी अमानतें आप के पास सुरक्षित कर देते थे। आप उनके बीच सादिक़(सच्चा आदमी) के नाम से जाने जाते थे; क्योंकि आप जो कुछ कहते और बात चीत करते थेउसमें सच्चाई से काम लेते थे। आप अच्छे व्यवहार वाले, मधु भाषी और ज़ुबान के फसीह थे,लोगों के लिए भलाई और कल्याण को पसंद करते थे। आपकी क़ौम आप से महब्बतकरती थी, अपना और पराया, नज़दीक और दूर का; हर एक आप से महब्बत करता था। आप रूपवान(खुश मन्ज़र) थे, आँख आप को देखने से नहीं थकती थी, इस प्रकार आप खुश अख़्लाक़ औरख़ुश मन्ज़र थे जितना कि यह शब्द अपने अंदर अर्थ रखता है। आपके रब (स्वामी औरपालनहार) ने आप के बारे मेंफरमायाः

निःसंदेह आप महान अख़्लाक़ के मालिकहैं।"(सूरतुक़लम:४)
थामस् कालार्रयल (एक अंग्रेज़ लेखक )अपनी पुस्तक "हीरोज़" केअंदर कहता हैः "बचपन ही से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को एक विचारक युवाके रूप में देखा जाता था, आपके साथियों ने आपका नाम अमीन (विश्वस्त) -सच्चाई और वफादारीवाला आदमी- रखा, अर्थात अपने कर्म, अपने कथन और अपने विचार में सच्चाई वाला। लोगों नेइस बात का निरीक्षण किया कि आप के मुँह से जो भी शब्द निकलता है वह हिकमतों (विज्ञानऔर बुद्धि) से भरा होता है। मैं उनके बारे में जानता हूँ कि वह बहुत खामोश मिज़ाजथे, जहाँ बोलने का कोई कारण नहीं होता था वहाँ खामोश रहते थे। जब आप बात करते तोहिकमत के मोती झड़ते थे ... हमने आपको पूरी जि़ंदगी दृढ़ सिद्वान्त वाला, ठोससंकल्प वाला, दूरदर्शि ,दयालु, सदात्मा, कृपालु, परहेज़गार (सयंमी) प्रतिष्ठीत औरउदार हृदय वाला देखा है। आप बहुत संजीदा (गंभीर) और निःस्वार्थ थे, इसके बावजूद आपनम्र और सरल, हंस-मुख और प्रफुल्ल, अच्छी आपसदारी और प्रेम भावना वाले थे। बल्किकभी कभी हंसी मज़ाक़ करते थे। प्रायः आपका चेहरा सच्चे दिल से मुसकुराता और चमकतारहता था। आप ज़हीन, बुद्धिमान और शेर दिल (सिंह साहस) थे... स्वभाविक रूप से महान थे।किसी पाठशाला ने आप को शिक्षित नहीं किया था और न किसी शिक्षक ने आपके अख़्लाक़ कोसंवारा और आपको सभ्य बनाया था, आप इस से बेनियाज़ थे... आप ने जीवन में अपने कार्य( मिशन) को अकेले रेगिस्तान के अंदर अंजाम दिया।
पैग़म्बर बनाये जाने से पहले आप कोतन्हाई महबूब हो गई थी, चुनांचे 'ग़ारे-हिरा' (हिरा नामी गुफ़ा) में लम्बी लम्बीरातों तक इबादत करते रहते थे। आप की क़ौम जो खुराफात किया करती थी, आप उन से बहुतदूर रहते थे। चुनांचे आप ने शराब को कभी मुँह नहीं लगाया, किसी बुत के सामने सिरनहीं झुकाया और न उसकी क़सम खाई, और न उस पर कभी चढ़ावा चढ़ाया जैसा कि आपकी क़ौमकिया करती थी। आप ने अपनी क़ौम की बकरियाँ चराईं, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नेफरमायाः



"अल्लाह तआला ने जो भी नबी भेजा सबने बकरियाँ चराईं" आप के साथियों नेपूछाः क्या आप ने भी?  आप ने जवाब दियाः "हाँमैं चंद क़ीरात के बदले मक्का वालोंकी बकरियाँ चराया करता था।"सहीह बुख़ारी
जब आप की उमर चालीस साल की हो गई तो आप पर आसमान से वह्य उतरीउस समय आप मक्का में 'गारे-हिरा' के अंदर इबादत कर रहे थे।अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी उम्मुल-मोमिनीन आइशारजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं: अल्लाह के पैग़म्बर पर वह्य की शुरूआत नीन्द में अच्छे सच्चे सपनों से हुई। आप जो भी सपना देखते थेवह सुब्ह की सफेदी की तरह प्रकट होताथा। फिर आप को तन्हाई महबूब हो गई। चुनाँचे आप 'ग़ारे-हिरा' में तन्हाई अपना लेतेऔर कई कई रात घर आए बिना इबादत में व्यस्त रहते थे। इसके लिए आप तोशा ले जाते थे।फिर आप खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा के पास आते और उतने ही दिनों के लिए फिर तोशा लेजाते। यहाँ तक कि आप के पास हक़ आ गया और आप गारे हिरा ही में थे। चुनाँचे आप केपास फरिश्ता आया और उसने कहाः पढ़ो। आप ने फरमायाः मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। आप कहतेहैं कि इस पर उसने मुझे पकड़ कर इतना ज़ोर से दबाया कि मेरी शक्ति निचोड़ दी। फिरउसने मुझे छोड़ कर कहाः पढ़ो। मैं ने कहाः मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। उसने दुबारा पकड़कर दबोचा यहाँ तक कि मैं थक गयाफिर छोड़ कर कहाः पढ़ोतौ मैं ने कहाः मैं पढ़ाहुआ  नहीं हूँ। उसने तीसरी बार मुझे पकड़ कर दबोचाफिर छोड़  कर कहाः                                           
"पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदाकिया, मनुष्य को खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ो और तुम्हारा रब बहुत करम वाला
(दानशील) है।" (सूरतुल अलक़ः १-३)
इन आयतों के साथ अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पलटे,आप का दिल धक धक कर रहा था। खदीजा पुत्री खुवैलिद के पास आए औरफरमायाः "मुझे चादर उढ़ा दो,मुझे चादर उढ़ा दो।"उन्हों ने आपको चादर उढ़ा दियायहाँ तक कि आप का भय समाप्त हो गया।
फिर खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा को पूरी बात बतलाकर कहाः "मुझे अपनी जान का डर लगता है।"
खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा ने कहाः हरगिज़ नहीं,अल्लाह की क़सम ! अल्लाह तआला आप को रुसवा नहीं करेगा। आप सिला-रहमी करतेहैं, कमज़ोरों का बोझ उठाते हैं, दरिद्रों की व्यवस्था करते हैं, मेहमान कीमेज़बानी करते हैं, हक़ की मुसीबतों पर सहायता करते हैं।
इसके बाद ख़दीजा आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपने चचेरे भाई वरक़ा बिन नौफिल बिन असद बिनअब्दुल-उज़्ज़ा के पास ले गईं। वह जाहिलियत के काल में ईसाई हो गये थे और इब्रानीमें लिखना जानते थे। चुनाँचे जितना अल्लाह तआला चाहता था इब्रानी भाषा मेंइन्जील लिखते थे। उस समय बहुत बूढ़े और अंधे हो चुके थे। उनसे खदीजा ने कहाः भाईजान! आप अपने भतीजे की बात सुनें।
वरक़ा ने कहाः भतीजे ! तुम क्या देखते हो?  अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो कुछ देखा था बयान कर दिया।
इस पर वरक़ा ने कहाः यह तो वही नामूस है जिसे अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम परउतारा था। काश मैं उस समय शक्तिवान होता ! काश मैं उस समय जि़न्दा होता ! जब आप कीक़ौम आप को निकाल देगी।
अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमायाः"क्या यह लोग मुझे निकाल देंगे?"
वरक़ा ने कहाः हाँ, जब भी कोई आदमी इस तरह कापैग़ाम लाया जैसा तुम लाए हो तो उस से अवश्य दुश्मनी की गई, और अगर मैं ने तुम्हारा समयपा लिया तो तुम्हारी भरपूर सहायता करूंगा।
इसके बाद वरक़ा की शीघ्र ही मृत्यु हो गई  और वह्य का सिलसिला बन्द हो गया। (सहीह बुख़ारी,सहीह मुस्लिम) यह सूरत आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) का आरम्भ थी। इसके बाद आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह का यह फरमान उतराः

"ऎ कपड़ा ओढ़ने वाले! खड़ाहो जा और डरा दे। और अपने रब (पालनहार) की महानता (बड़ाई) बयान कर। अपने कपड़े को पाकरखा कर। नापाकी (बुतों की पूजा) को छोड़ दे।" (सूरतुल-मुददस्सिरः १-४)
इस सूरत केद्वारा आपकी पैग़म्बरी रिसालत और दावत का आरम्भ हुआ। चुनाँचे आप ने अपने रसूल(पैग़म्बर) होने का एलान किया और अपनी क़ौम -मक्का वालों-को इस्लाम की दावत देनाशुरू कर दिया। इस पर आप को उनकी ओर से हठ का सामना हुआ और उन्होंने आपकी दावत कोनकार दिया। क्योंकि आप उन्हें एक ऎसी चीज़ की दावत दे रहे थे जो उनके लिए अनोखी थी,और जिस का संबंध उनके सारे धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों से था।उन्हें केवल एक अल्लाह की इबादत करने और उसके सिवा की इबादत छोड़ने की दावत देने, और क़ौम की अक़्लो और उनके पूज्यों –बुतों- को मूर्ख और बुद्धिहीन ठहराने पर बसनहीं किया गया था, बल्कि इस्लाम ने उन पर उनके मनोरंजन, मालदारी और एक दूसरे परगर्व करने के साधन को भी हराम कर दिया। चुनाँचे सूद-ब्याज, जि़ना, जुवा और शराब कोउन पर हराम कर दिया। इसके साथ ही उन्हें तमाम लोगों के बीच अदल व इन्साफ और न्यायकरने की दावत दी, जिनके बीच कोई ऊँच-नीच और भेद-भाव नहीं, अगर है तो केवल तक़्वा(परहेज़गारी) के आधार पर है। ऎसी हालत में क़ुरैशश, जो अरब के सरदार थे, इस बात कोकैसे पसंद कर सकते थे कि उनके और गुलाम के बीच बराबरी पैदा की जाए (और दोनों को एकस्थान पर ला खड़ा किया जाए)। उन्हों ने केवल आप की दावत को नकारने पर ही बस नहींकिया, बल्कि उन्हों ने आप को गाली गलूज के द्वारा दुख पहुँचाया। विभिन्न तोहमतों-झूठ, पागल पन, जादू- से आरोपित किया, जिन से वह आपको अपनी दावत की घोषणा करनेसे पहले आरोपित करने की शक्ति नहीं रखते थे। चुनाँचे उन्होंने अपने बेवक़ूफों को आपके पीछे लगा दिया जिन्हों ने आप को सताया और आपके साथियों को तकलीफें पहुंचाईं। आप को  शारीरिक तकलीफ भी दी गई।
अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते : आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम काबा के पास नमाज़ पढ़ रहे थे और क़ुरैशश की एक जमाअतअपनी बैठक में थी कि इतने में उनके एक कहने वाले ने कहाः क्या तुम इस रियाकार कोनहीं देखते, कौन है जो आले-फलाँ के ऊँटों के पास जाए और उस की ओझड़ी ले कर आए और जब वह सज्दा करें तो उनके दोनों कंधों के बीच (पीठ) पर डाल दे?  इस पर क़ौम का सबसेअभागा आदमी उठा, ओझड़ी  ले आया और जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सज्दे मेंगये तो उसे आप की पीठ पर दोनों कंधों के बीच डाल दिया। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम सज्दे ही में पड़े रहे और वह लोग इस तरह से हँसे कि हँसी के मारे एक दूसरेपर गिरने लगे। फिर किसी ने जा कर फातिमा रजि़यल्लाहु अन्हा को बताया। वह उस समयछोटी बच्ची थीं। चुनाँचे वह दौड़ कर आईं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सज्देही में थे यहाँ तक कि उन्होंने आप की पीठ से ओझड़ी हटा कर फेंकीं और उन लोगों कोबुरा भला कहने लगीं। (सहीह बुख़ारी)
मुनीब अल-अज़दी कहते हैं: मैं ने जाहिलियत केज़माने  में अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा है कि आप फरमारहे थेः
"ऎ लोगो! ला-इलाहा-इल्लल्लाह कहो कामयाब हो जाओगे।" इस पर कुछ लोगों नेआपके चेहरे पर थूक दिया, कुछ ने आप पर मिटटी फेंकी, और कुछ ने गालियाँ दीं, यहाँतक कि दोपहर हो गया, तो एक बच्ची पानी का एक बड़ा प्याला ले कर आई और उस से आप काचेहरा और हाथ धोया। इस पर आप ने कहाः "ऎ प्यारी बेटी! अपने बाप पर ग़रीबी औररुसवाई से न डर।" (अल-मोजमुल कबीर लित-तबरानी)
उरवा बिन ज़ुबैर कहते हैं :मैं नेअब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस से पूछा कि मुाशरिकीन ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम के साथ जो सब से सख्त तरीन (बुरा) बरताव किया था आप मुझे उसके बारें मेंबतायें?  उन्हों ने कहाः पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम काबा के पास नमाज़पढ़ रहे थे कि उक़्बा बिन अबी मुअ़ैत आ गया। उसने आते ही अपना कपड़ा आप की गर्दनमें डाल कर कठोरता से आप का गला घूँटा इतने में अबु बक्र आ गये और उन्हों ने उसकाकंधा पकड़ कर धक्का दिया और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दूर करते हुएफरमायाः तुम लोग एक आदमी को इस लिए मार डालना चाहते हो कि वह कहता है मेरा रबअल्लाह है और तुम्हारे पास तुम्हारे रब के पास से खुली हुई निाशनियाँ ले कर आयाहै? (सहीहबुख़ारी)

यह सारी घटनायें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपनी दावत को जारी रखने से न रोक सकीं। चुनाँचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज्ज केलिए मक्का आने वाले क़बीलों पर इस्लाम को पेश करते थे। जिसके फलस्वरूप यसरिब - जोआज 'मदीना तैयिबा' के नाम से सुप्रसिद्ध है -के कुछ लोग आप पर ईमान ले आए और आप कोयह वचन दिया कि अगर आप उनके पास आते हैं तो वह आपकी मदद और हिफाज़त करेंगे। आप नेउनके साथ अपने एक साथी मुसअब बिन उमैर रजि़यल्लाहु अन्हु को उन्हें इस्लाम कीशिक्षा देने के लिए भेजा। फिर उस अत्याचार और तकलीफ व परेाशनी के बाद जो आपको औरआप पर ईमान लाने वाले कमज़ोर लोगों को अपनी क़ौम की तरफ से पहुँची, आप के रब ने आपको मदीना की ओर हिज्रत कर जाने की आज्ञा दे दी। मदीना वालों ने आप का बेहतरीन स्वागत किया।

इस प्रकार मदीना आप की दावत का केन्द्र और इस्लामी राज्य की राजधानी बनगया। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसको अपना ठिकाना बना लिया और लोगोंको क़ुरआन पढ़ाना और उन्हें दीन के अहकाम (धर्म-शास्त्र्) की शिक्षा देना शुरू करदिया। मदीना के लोग पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सदव्यवहार और महानगुणों से बहुत प्रभावित हुए और आप से हर चीज़ से बढ़ कर, यहाँ तक कि अपनी जानों सेभी अधिक महब्बत करने लगे। वह आपकी सेवा करने में एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश  करते थे और आप के रास्ते में क़ीमती से क़ीमती चीज़ निछावर कर देते थे। उन्होंनेईमान   और           रूहानियत के समाज में जि़ंदगी गुज़ारी जो खुशहाली और सौभाग्य से   परिपूर्णथा। जहाँ समाज के हर व्यक्ति के बीच महब्बत, उल्फत और भाईचारगी के रिश्ते प्रकाश मेंआए। चुनाँचे धनी और निधर्न,शरीफ (सज्जन) और नीच, गोरा और काला, अरबी और अजमी;  इसमहान दीन में बराबर हो गये। उनके बीच केवल तक़्वा (सयंम) के आधार पर ही कोई फ़र्क औरअंतर रह गया। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना में एक साल ठहरने केबाद आप के और आपकी उस क़ौम के बीच, जिसे आपकी दावत की प्रगति (तरक्क़ी) बुरी लग रहीथी, सामना और टकराव शुरू हो गया। तथा इस्लामी इतिहास की पहली लड़ाई अर्थात 'बद्र' कीलड़ाई दो ऎसे दलों के बीच घटित हुई, जो दोनों आपस में संख्या और जंगी हथियार मेंएक दूसरे से बहुत मुख़्तलिफ (विभिन्न) थे; मुसलमानों  की संख्या ३१४ और मुशरिकों कीसंख्या १,०००थी। अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने अपने पैग़म्बर और उनके साथियों की सहायताकी और उनकी जीत हुई। फिर इसके बाद मुसलमानों और मुशरिकीन के बीच लगातार एक के बाददूसरी लड़ाईयाँ होती रहीं। आठ साल के बाद पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दसहज़ार (१०,०००)योद्धाओं की फौज तैयार करने में सफल हो गये। उसे लेकर मक्का की ओर रवाना हुए और उसमें विजेता बनकर प्रवेश  किया और अपने क़बीले और अपनी उस क़ौम को पराजित करदिया जिसने आप को हर प्रकार की तकलीफें दी थी और आप के मानने वालों को विभिन्न प्रकार की यातनाओं से दोचार किया था यहाँ तक कि उन्हें अपने धन-दौलत, बाल-बच्चे औरघर-बार को त्यागने पर मजबूर कर दिया था। आप ने उन्हें पराजित कर दिया और उन परकरारी जीत प्राप्त की। चुनाँचे उस साल का नाम ही "विजय का साल"  पड़ गया जिसकेबारे में अल्लाह तबारक व तआला नेफरमायाः

जब अल्लाह की मदद और फत्ह विजय आजाए। और तू लोगों को अल्लाह के दीन में गिरोह ही गिरोह आता देख लेतो आपने रब कीतस्बीह करने लग हम्द के साथ और उससे क्षमा की प्राथर्ना करनिःसंदेह वह बड़ा हीक्षमा करने वाला है।"(सूरतुन-नस्रः १-३)
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्कावालों को जमा करके उनसे कहाः "तुम्हारा क्या खयाल है मैं तुम्हारे साथ क्या करनेवाला हूँ?" उन्होंने कहाः अच्छा, आप करीम (दयालु) भाई हैं और करीम (दयालु) भाई केबेटे हैं। आप ने फरमायाः "जाओ तुम सब आज़ाद हो।" (सुनन बैहक़ी अल-कुब्रा)
फत्हेमक्का के कारण बहुत से लोग इस्लाम में प्रवेश किए। फिर पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम मदीना वापस लौट गए और एक समय काल के बाद अपने मानने वाले साथियों में से एकलाख चौदह हज़ार साथियों के साथ हज्ज के लिए मक्का की ओर रवाना हुए और यह   हज्ज'हज्जतुल-वदाअ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस लिए कि यह हज्ज मुसलमानों को बिदा कहनेके समान था क्योंकि आप की वफात का समय करीब आ गया था।
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मदीना में सोमवार के दिन १२ रबीउल-अव्वल सन` ११ हि॰ को स्वर्गवास हुआ औरउसी दिन आप को दफन किया गया। आप की वफात पर मुसलमानों को बहुत गहरा दुख हुआ यहाँ तककि कुछ सहाबा ने इस खबर को सच्चानहीं माना। उन्हीं में से उमर बिन खत्ताबरजि़यल्लाहु अन्हु हैं। उन्हों ने कहाः जिसको मैं ने यह कहते हुए सुन लिया किमुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हो गई, उसकी गदर्न उड़ा दूँगा। इस परअबू-बक्र रजि़यल्लाहु अन्हु खड़े हुए और अल्लाह तआला के इस फर्मान की तिलावत की

"मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम केवल एक पैग़म्बर ही हैंइन से पहले बहुत सेपैग़म्बर हो चुके हैंक्या अगर उनकी वफात हो जाए या वह शहीद हो जाएँतो तुमइस्लाम से अपनी ऎडि़यों के बल फिर जाओगेऔर जो कोई फिर जाए अपनी ऎडि़यों पर तो वहहरगि़ज़ अल्लाह तआला का कुछ न बिगाड़ेगा। और अनक़रीब अल्लाह तआला शुक्रगुज़ारों कोअच्छा बदला देगा।" (सूरत आल इम्रानः १४४)
जब उमर रजि़यल्लाहु अन्हु ने यह आयत सुनी तोइस पर ठहर गए, और आप रजि़यल्लाहु अन्हु अल्लाह की किताब पर अमल करने वाले थे। वफात के समय पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र  त्रिसठ (६३) साल की थी; पैग़म्बरबनाए जाने से पहले आप मक्का में चालीस साल रहे और नबी होने के बाद तेरह साल तकमक्का में रहे और लोगों को तौहीद की दावत देते रहे। फिर आप ने मदीना की ओर हिज्रतकी और वहाँ दस साल तक कि़याम किया। आप पर वह्य के उतरने का सिलसिला लगातार जारी रहायहाँ तक कि आप पर पूरा क़ुरआन उतर गया और इस्लाम के अहकाम व क़वानीन परिपूर्णहोगये।

डा जी लीबोन (Dr.G.Lebon) अपनी किताब 'अरब की सभ्यता' में कहते हैं:"यदि लोगों की क़ीमत और महत्व को उनके महान कारनामों के द्वारा आंका जाए तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इतिहास में सबसे महान लोगों मे से हैं, पच्छिमी देाशों केविद्वानों ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ इन्साफ से काम लेना शुरूकर दिया है, जब कि धार्मिक कटटरपन और पक्षपात ने बहुत से इतिहासकारों की आँखों कोआप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की महानता को स्वीकार करने से अंधा कर दिया है।
(Reproduced here with thanks from http://mohammed-hindi.blogspot.in/and reward in Akhirat by Almighty Allah InshA ALLAH )