इंसानी भाईचारा और इस्लाम
महात्मा गाँधी अपनी
अद्भूत शैली में कहते हैं- ‘‘ कहा जाता है कि यूरोप वाले दक्षिणी अफ्ऱीक़ा
में इस्लाम के प्रासार से भयभीत हैं, उस इस्लाम से जिसने स्पेन को सभ्य
बनाया, उस इस्लाम से जिसने मराकश तक रोशनी पहुँचाई और संसार को भईचारे की
इंजील पढ़ाई। दक्षिणी अफ्ऱीक़ा के यूरोपियन इस्लाम के फैलाव से बस इसलिए
भयभीत हैं कि उनके अनुयायी गोरों के साथ कहीं समानता की माँग न कर बैठें।
अगर ऐसा है तो उनका डरना ठीक ही है। यदि भाईचारा एक पाप है, यदि काली
नस्लों की गोरों से बराबरी ही वह चीज़ है, जिससे वे डर रहे हैं, तो फिर
(इस्लाम के प्रसार से) उनके डरने का कारण भी समझ में आ जाता है।’’
हज: मानव-समानता का एक जीवन्त प्रमाण
दुनिया हर साल हज के मौक़े पर रंग, नस्ल
और जाति आदि के भेदभाव से मुक्त इस्लाम के चमत्कारपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय
भव्य प्रदर्शन को देखती है। यूरोपवासी ही नहीं, बल्कि अफ्ऱीक़ी, फ़ारसी,
भारतीय, चीनी आदि सभी मक्का में एक ही दिव्य परिवार के सदस्यों के रूप में
एकत्र होते हैं, सभी का लिबास एक जैसा होता है। हर आदमी बिना सिली दो सफ़ेद
चादरों में होता है, एक कमर पर बंधी होती है तथा दूसरी कंधों पर पड़ी हुई।
सब के सिर खुले हुए होते हैं। किसी दिखावे या बनावट का प्रदर्शन नहीं
होता। लोगों की ज़ुबान पर ये शब्द होते हैं-‘‘मैं हाज़िर हूँ, ऐ ख़ुदा मैं
तेरी आज्ञा के पालन के लिए हाज़िर हूँ, तू एक है और तेरा कोई शरीक
नहीं।’’इस प्रकार कोई ऐसी चीज़ बाक़ी नहीं रहती, जिसके कारण किसी को बड़ा
कहा जाए, किसी को छोटा। और हर हाजी इस्लाम के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का
प्रभाव लिए घर वापस लौटता है। प्रोफ़सर हर्गरोन्ज (Hurgronje) के शब्दों
में- ‘‘पैग़म्बरे-इस्लाम द्वारा स्थापित राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय
एकता और मानव भ्रातृत्व के नियमों को ऐसे सार्वभौमिक आधारों पर स्थापित
किया है जो अन्य राष्ट्रों को मार्ग दिखाते रहेंगे।’’वह आगे लिखता
है-‘‘वास्तविकता यह है कि राष्ट्रसंघ की धारणा को वास्तविक रूप देने के लिए
इस्लाम का जो कारनामा है, कोई भी अन्य राष्ट्र उसकी मिसाल पेश नहीं कर
सकता।’’
पुस्तक- इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( सल्ल. )
लेखक: प्रोफ़ेसर के. एस. रामा कृष्णा रावभूतपूर्व अध्यक्ष, दर्श ण-शास्त्र विभाग